मेरे इस काव्य की प्रेरणा हो तुम,
मेरे लघु जीवन की आराधना हो तुम,
मेरे मन में बसे चित्र की कल्पना हो तुम,
एक खूबसूरत सपना ही सही, मेरा अपना हो तुम।
चुपके से तुम ख्यालों में आती हो,
दिल में हलचल मचा कर कहीं लुप्त हो जाती हो,
यह ज्ञात नही मुझको तुम फूल हो या कलि,
फिर भी तुम्ही को अंकित है यह मेरी गीतांजलि।
आशा ही नही यह प्रबल विश्वास है मेरा,
स्वीकार कर इस काव्य को सफल करोगी जन्म मेरा,
बहुत सता चुकी हो अब तो प्रत्यक्ष हो जाओ,
मेरे अब तक के तप का कुछ तो फल देती जाओ॥
मेरे लघु जीवन की आराधना हो तुम,
मेरे मन में बसे चित्र की कल्पना हो तुम,
एक खूबसूरत सपना ही सही, मेरा अपना हो तुम।
चुपके से तुम ख्यालों में आती हो,
दिल में हलचल मचा कर कहीं लुप्त हो जाती हो,
यह ज्ञात नही मुझको तुम फूल हो या कलि,
फिर भी तुम्ही को अंकित है यह मेरी गीतांजलि।
आशा ही नही यह प्रबल विश्वास है मेरा,
स्वीकार कर इस काव्य को सफल करोगी जन्म मेरा,
बहुत सता चुकी हो अब तो प्रत्यक्ष हो जाओ,
मेरे अब तक के तप का कुछ तो फल देती जाओ॥
No comments:
Post a Comment