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Friday, June 27, 2008

आज का भारत

जब कब्र में भी बच्चे भूख से दूध दूध चिल्लाते हैं,
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडों की रात बिताते हैं,
कालदूत जब अकाल बन धरती को खा जाता है,
मुठ्ठी भर अनाज के लिए जब मार-काट हो जाता है,

जिस्म चीर जब सूखी हड्डियां भूख की दास्तान सुनाती है,
मौत भी जब इंसान के लिए वरदान सी बन जाती है,
एक बूँद दवा जब खून से सौदा करने लगती है,
रोते-रोते जब नम आँखें भी मरुभूमि बनने लगती है,

युवती की लज्जा-शर्म बेच, जब ब्याज चुकाए जाते हैं,
चांदी के कुछ सिक्कों तले उनकी आवाज़ चींखती पुकारती दब जाती है।
प्यालों में डूब जब रिश्ते-नाते भुला दिए जाते हैं,
बीवी की जगह तब बेटियों से प्यास भुझाये जातें हैं।

तन पे एक सूती डोर चढ़ जाए ये सोच, जब अबला हाथ उठाती है,
वासना की वह अनंत भूख, क्षण-भर में उन्हें खा जाती है।
बहनों की इज्ज़त जब सरे बाज़ार लुट जाती है,
सारे भाई सर झुकाए तमाशा देख रह जाते हैं।

फुटपाथों पे खड़े जब प्रजातंत्र ने दी सभ्यता को पुकार,
मुह छुपाये सभ्यता भाग पड़ी, चींखती पुकारती करती हाहाकार। 
शर्म से शरमाकर जब संस्कृति छोड़ जाए समाज का दामन,
पापी महलों का आँगन तब देता मुझको आमंत्रण। 

माफिया के नेताओं ने मचाई लूट अपहरण क्लेश,
हाथ दलालों के बिका गांधी तेरा देश।
कहीं गरीबी भुकमरी, कहीं पे हाहाकार,
संशय घर कहीं मिले खुशियों के त्यौहार।

जो लोग बजाते रह गए प्रजातंत्र की ढोल,
उनकी भाषा को नही मिले यहाँ पर बोल। 
देवलोक में कैद है सुख सुविधा के मन्त्र,
सड़क किनारे पड़ा हुआ है भूखा एक जनतंत्र। 
यह इंसानों की खुशियाँ स्वर्गलोक में छिपाए जाते हैं,
हटो वियोग के मेघ पंथ से, स्वर्ग लूटने हम आतें हैं॥

2 comments:

Anonymous said...

depressing mate... but nice use of words... keep up the good work

Krish said...

huh! u wrote that!! gr8 job! kya baat hai... keep them coming...
have added u in my bloglist...